भगवान श्री श्री आनन्द मूर्ति जी के जयकार से शुरू किया गया था योग फाॅर लिबरेशन के महोत्सव का तीसरा दिन

RAKESH SONI

भगवान श्री श्री आनन्द मूर्ति जी के जयकार से शुरू किया गया था योग फाॅर लिबरेशन के महोत्सव का तीसरा दिन

रांची । योग फाॅर लिबरेशन’ के तत्त्वावधान में आयोजित ‘चार दिवसीय योग महोत्सव’ के तीसरे दिन का शुभारम्भ गुरु सकाश, शंखनाद और पाञ्चजन्य से ठीक पांच बजे प्रातः ब्रह्म मुहूर्त्त में हुआ। गुरु सकाश के बाद उसकी संक्षिप्त जानकारी योग शिक्षिका व्यंजना आनंद के द्वारा दी गयी । पाञ्चजन्य में आज प्रभात संगीत पंकज बजाज(देहरादून), कीर्त्तन वाणी श्रीवास्तव तथा गुरु पूजा व्यंजना आनन्द ने करवाया। आनलाइन आयोजित इस योग महोत्सव में बहुत लोग भाग लें रहे हैं। विगत दिनों की भाॅंति आज भी प्रातः ठीक 6.00बजे योगाभ्यास का कार्यक्रम फोरम के टाइटल साॅन्ग के विडियो के साथ शुरू हुआ। आरम्भ में सभी प्रतिभागियों ने वैदिक ऋचा संगच्छध्वं… का समवेत उच्चारण किये । जिसका भाव है सबलोग एक साथ, एक मन प्राण तथा हृदय की एक ही आकुति के साथ आगे बढ़ें। भूमा भाव के एकत्व को समझकर अपनी आवश्यकता के अनुसार एक मानव समाज की व्यवस्था करने में सक्षम हो सकें।

इसके बाद पंकज बजाज ने सूक्ष्म व्यायाम करवाया, तत्पश्चात् आचार्य गुणीन्द्रानन्द अवधूत ने सबों को श्वास क्रिया तथा आग्नेय प्राणायाम का अभ्यास करवाया और उसके बारीकियों को बताया।

आज योगाभ्यास का नेतृत्व फोरम की योग प्रशिक्षिका मीरा प्रकाश ( नई दिल्ली) ने किया और प्रतिभागियों को अनाहत चक्र से सम्बन्धित भुजंगासन, शलभासन, भावासन, कर्मासन और झूलासन का अभ्यास करवाया, वहीं इन महत्वपूर्ण आसनों के लाभ और किन्हें करना चाहिये और किन्हें नहीं करना चाहिए इसका समुचित ज्ञान व्यंजना आनंद ने दिया वहीं सम्पूर्ण बाॅडी मसाज पूनम श्रीवास्तव ने करवाया और शवासन सुचित्रा शर्मा (जयपुर) ने।

आज फीडबैक सत्र में इन्द्राणी जाधव(सोलापुर), सुचित्रा शर्मा (जयपुर), घनश्याम प्रसाद, अरुणिमा (मुरादाबाद) आदि ने अपने अनुभवों को साझा किया जो अत्यन्त मार्मिक और प्रेरणादायक था।

प्रातः कालीन सत्र के अन्त में आचार्य गुणीन्द्रानन्द अवधूत जी ने ‘योगाभ्यास व प्राणायाम के लिए सात्विक भोजन लेना या सात्त्विक होना क्यों जरूरी है?’ विषय पर संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित विचार रखा। उन्होंने बताया कि मनुष्य का आहार सात्विक ही होना चाहिए योगासन, प्राणायाम से लेकर ध्यान तक की पूरी प्रक्रिया बाधित हो जायेगी। उन्होंने कहा कि आहार शुद्धि से सत्त्व शुद्धि होती है और सत्त्व शुद्धि से ग्रन्थी शुद्धि, ग्रन्थी शुद्धि से कोष शुद्धि और कोष शुद्धि से अन्त:करण की शुद्धि होती है। यही कारण है कि योगाभ्यासियों को सात्त्विक आहार ही ग्रहण करना उचित है । रात्रि 8 : 30 बजे आचार्य गुणीन्द्रानन्द अवधूत जी ने
‘ मानव मात्र की जीवन यात्रा का अन्तिम पड़ाव मोक्ष, क्यों?’
या मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष-प्राप्ति ही क्यों?’*विषय पर अपने विचार विस्तार से रखे तथा जिज्ञासुओं के अनेक महत्वपूर्ण प्रश्नों का समाधान भी दिया।

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