मुक्त विषय पर आयोजित प्रतियोगिता में पूजा नीमा ,केटी दादलानी, लता देवी जी चयनित हुई। समीक्षक का कार्यभार पियूष राय जी ने संभाला।

RAKESH SONI

मुक्त विषय पर आयोजित प्रतियोगिता में पूजा नीमा ,केटी दादलानी, लता देवी जी चयनित हुई। समीक्षक का कार्यभार पियूष राय जी ने संभाला।

सारनी:- मनसंगी काव्यधारा समूह पर मुक्त विषय में आयोजित प्रतियोगिता में पूजा नीमा जी ने प्रथम स्थान द्वितीय स्थान पर केटी दाद लानी जी तथा तृतीय स्थान पर लता देवी पौडेल रही।
समीक्षक का कार्य पियूष राय जी बिहार ने संभाला।

रचनाएं निम्नवत है

एक खुली किताब है जिंदगी,
अपने कर्मो का हिसाब है जिंदगी,

कभी संघर्षं से भरी है जिंदगी,
तो कभी खुशियों के फुल खिलाती हैं जिंदगी,

हर रोज एक नए पन्ने को जो जोड़ती है,
उन पन्नों की किताब है जिंदगी,

कभी मिला साथ अपनो का तो कभी छोड़ दिया,
अपनो की पहचान करवाती हैं जिंदगी,

किसी के लिए महलो में आराम् सी है जिंदगी,
किसी के लिए दो वक़्त की रोटी के लिए मोहताज है जिंदगी,

कोई रो रो कर काट रहा है तो कोई मस्ती में जिए जा रहा है,कोई थोड़े से गमो में ही टूटता जा रहा है, कोई जिंदगी को सजाये जा रहा है।

कोई समझ नहीं पा रहा है की क्या है जिंदगी,
बस बिंदास जिए जाना ही है जिंदगी

इसी का नाम है जिंदगी,
जिए जाने का नाम है जिंदगी,

स्वरचित पूजा नीमा

*मुक्त मन होता नहीं है याद से*
*प्यार में पागल हुआ जज़बात से*

*क्या करूं जाऊँ अकेला मैं कहां*
*बिन तुम्हारे चल सकूं ना धाक से*

*मिल गया ऐसा रसिक बलमा मुझे*
*इक गुलाबी फूल लटका शाख से*

*अब तम्मन्ना है नहीं कोई बची*
*सज गया जीवन रंगीला शान से*

*मन मगन है प्रेम भक्ति में रमा*
*मीत मेरा मिल गया है ज्ञान से*

*केटी दादलाणी*
*भोपाल*

“चलो हम भी उड़ चलते हैं “

चलो हम भी मुक्त होकर उन्मुक्त गगन में उड़ चलते हैं
पंख फैला कर अपनी मीठी धुन गुनगुनाते
हुए पुरी आसमान कि सैर करते हैं
तोड़ बन्धन जग के सारे
एक नयी दुनीया में खो जाते हैं
पर रुको जरा…..
क्या परिंदे सुरक्षित हैं गगन में ?
एक यही सवाल उठता है
बारबार मेरे मन में
क्या हो रहा है इस जहां में ?
अपने बच्चों को घोसले में छोड़
दाने कि तलास में उड़ चले पंछी के पर
क्यु कुतर दिये जाते हैं ….
बेसाहारा हो जाते हैं उसके दिल के टुकड़े ….
कभी लावारिस हो जाते हैं बच्चे
तो कभी उजाड़ दि जाती है
किसी मा कि कोख ….
फिर भीएक नयी उम्मीद लिए
हौसलो में भर के दम
चलो हम भी परिंदो की तरह
मुक्त होकर उन्मुक्त गगन में उड़ चलते हैं
पन्ख फैला कर अपनी मीठी धुन गुनगुनाते हुए
पुरे आसमान कि सैर करते हैं ।

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