दुश्मन थर थर कांप गया उसका जब पौरुष जागा था। उसके दृढ़ व तेज के आगे अकबर भी रण से भागा था।
बैतुल। ग्राम बाडेगाव में वीरांगना रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर महारानी का पूजन अर्चन कर माल्यार्पण किया तत्पश्चात वृक्षारोपण की शुरुआत की गई और ग्रामीणों को फलदार वृक्ष भेंट किए गए इस अवसर पर मुख्य रूप से योगेश धुर्वे ,सुनील सरियाम ,रमेश सरियाम, दिनेश सरियाम ,सुरेश मरकाम गुड्डू कुमरे ,तीरथ सिंह ,बिशेर सिंह मुख्य रूप से उपस्थित रहे सुनील सरियाम ने बताया कि बलिदान दिवस पर महिला श्रमिकों एवं ग्रामीणों को मास्क वितरित कर वैक्सीन के टीके लगाने का भी आग्रह किया गया ताकि हम इस वैश्विक महामारी की तीसरी लहर को आने से रोक सकेंगे ।
24 जून रानी दुर्गावती बलिदान दिवस पर शत शत नमन
बलिदान दिवस पर एक पेड़ लगाकर पेड़ की सुरक्षा का लिया प्राण
रानी दुर्गावती का साहस नारीशक्ति के लिए प्रेरणा दायक है जिन्होंने अपने जीवन मैं 14 वर्षों तक सफलता पूर्वक स्वतंत्र शासन किया । आओ उनके इतिहास के बारे जाने ।
रानी दुर्गावती की जीवनी और इतिहास
रानी दुर्गावती का नाम भारत की उन महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में आता है जिन्होंने मात्रभूमि और अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया । रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरत सिंह की पुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी थीं । इनका राज्य क्षेत्र दूर-दूर तक फैला था । रानी दुर्गावती बहुत ही कुशल शासिका थीं इनके शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी । इनके राज्य पर ना केवल अकबर बल्कि मालवा के शासक बाजबहादुर की भी नजर थी । रानी ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े और उनमें विजय भी पाई ।
रानी दुर्गावती का जन्म और बचपन
रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजा कीरत राय ( कीर्तिसिंह चंदेल ) के परिवार में कालिंजर के किले में 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था । राजा कीरत राय की पुत्री का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन होने के कारण उसका नाम दुर्गावती रखा गया । वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में आता है । इनके पिता राजा कीरत राय का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता था इनका सम्बन्ध उस चंदेल राज वंश से था राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में खदेड़ा था और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया । कन्या दुर्गावती का बचपन उस माहोल में बीता जिस राजवंश ने अपने मान सम्मान के लिये कई लडाइयां लड़ी । कन्या दुर्गावती ने इसी कारण बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी प्राप्त की ।
रानी दुर्गावती का विवाह और ससुराल
कन्या दुर्गावती जब विवाह योग्य हुई तब 1542 में उनका विवाह गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह के सांथ संपन्न हुआ । दोनों पक्षों की जाती अलग-अलग थीं । राजा संग्राम शाह का राज्य बहुत ही विशाल था उनके राज्य में 52 गढ़ थे और उनका राज्य वर्तमान मंडला, जबलपुर , नरसिंहपुर , सागर, दमोह और वर्तमान छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था । 1545 में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया ।