स्वामी विवेकानंद विचार मंच द्वारा बाजार चौक से कैंडल मार्च निकालकर जय स्तंभ चौक पर वीर शहीदो को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। 

RAKESH SONI

स्वामी विवेकानंद विचार मंच द्वारा बाजार चौक से कैंडल मार्च निकालकर जय स्तंभ चौक पर वीर शहीदो को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। 

सारणी। स्वामी विवेकानंद विचार मंच सारनी के कार्यकर्ताओं ने 23 मार्च शहादत दिवस पर वीर शहीद क्रांतिकारी भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु को उनकी वीरता को याद करके श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। स्वामी विवेकानंद विचार मंच के सदस्य समाजसेवी रंजीत डोंगरे, दशरथ डांगे ने बताया कि प्रतिवर्षानुसार *इस *वर्ष भी देश के वीर जाबाज शहीद भगतसिंह , राजगुरू, सुखदेव, की शहादत को याद करते हुए वीर शहीदों को दीप जलाकर युवाओं द्वारा बाजार चौक सारनी से पैदल मार्च करते हुए भारत माता किं जय इंकलाब जिंदाबाद भगतसिंह राजगुरु सुखदेव अमर रहे के उद्घोष लगाते हुए रैली के माध्यम से जय स्तम्भ चौक सारनी में पहुँचकर नगर के युवाओं ओर प्रबुद्धजनों ने श्रद्धांजलि अर्पित किये। युवा मंच के सदस्य समाज सेवी रंजीत डोंगरे ने कार्यकर्ताओं के बीच शहादत दिवस की बात रखते हुए कहा कि मार्च का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है। इस दिन को भारत शहीद दिवस के तौर पर मनाता है। आज ही के दिन भारत के वीर सपूतों ने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया था। शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाम हर देश प्रेमी, युवा जरूर जानता है। ये तीनों ही युवाओं के लिए आदर्श और प्रेरणा है। इसी वजह इनका पूरा जीवन है, जिसे इन तीनों वीरों ने देश के नाम कर दिया। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी थी। उन्हें लाहौर षड़यंत्र के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। लेकिन क्या आपको पता है कि इन तीनों शहीदों की मौत भी अंग्रेजी हुकूमत का षड़यंत्र था? भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी 24 मार्च को देना तय था लेकिन अंग्रेजों ने एक दिन पहले ही यानी 23 मार्च को भारत के तीनों सपूतों को फांसी पर लटका दिया। आखिर इसकी वजह क्या थी? आखिर भगत सिंह और उनके साथियों ने ऐसा क्या जुर्म किया था कि उन्हें फांसी की सजा दी गई। सवामी विवेकानंद विचार मंच के सदस्य समाज सेवी दशरथ डांगे ने भी क्रांतिकारी शहीदों के जीवन के इतिहास को बताते हुए कहा कि
दो साल की कैद के बाद राजगुरु और सुखदेव के साथ उन्हें 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन देश में उनकी फांसी की खबर से लोग भड़के हुए थे। वह तीनों सपूतों की फांसी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीयों का आक्रोश और विरोध देख अंग्रेज सरकार डर गई थी।
अंग्रेजी हुकूमत को डर था कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी वाले दिन भारतीयों का आक्रोश फूट जाएगा। माहौल बिगड़ सकता है। ऐसे में उन्होंने अचानक फांसी का दिन और समय बदल दिया।
भगत सिंह को 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को शाम 7.30 फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस अवसर पर स्वामी विवेकानंद विचार मंच के सदस्य समाजसेवी राकेश सोनी, निराकार सागर, बालक राम यादव, रोहित डेहरिया , मुकेश सोनी, कामदेव सोनी, प्रवीण सोनी, बिटू यादव, ललन यादव , सागर माकोड़े,पंजाबराव बारस्कर, रेवा शंकर मगरदे,विरु सोनारे, आदि अन्य लोग मौजूद थे।

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