साधकों ने पलाश के फूलों के रंग से खेली होली(संत श्री आशारामजी आश्रम में हुआ आयोजन)
बैतूल। होली भारतीय संस्कृति की पेहचान व भेदभाव मिटाकर पारस्परिक प्रेम व सद्भाव प्रकट करने का पुनीत पर्व है।पलाश के फूलों का रस रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाकर सप्तधातु और सप्तरंगों को संतुलित रखता है इसे ध्यान रखते हुए संत श्री आशारामजी बापू की सत्प्रेरणा से श्री योग वेदांत सेवा समिति, बैतूल द्वारा चिखलार स्थित संत श्री आशारामजी आश्रम में हर्षोल्लास से वैदिक होली का आयोजन किया गया।
समिति के जिलाध्यक्ष राजेश मदान ने बताया कि गर्मी के दिनों में सूर्य की किरणें हमारी त्वचा पर सीधी पड़ती है जिससे शरीर की गर्मी बढ़ने से क्रोध भी बढ़ जाता है इसीलिए प्राचीन काल में होली के दिन देशभर में पलाश के फूलों को एकत्रित कर उसके प्राकृतिक रंगों से ही होली खेली जाती थी ताकि हमारे शरीर मे गर्मी सहन करने की शक्ति बढ़े किंतु वर्तमान में लोगों ने होली जैसे महापर्वों का स्वरूप बिगाड़कर नशा करके, भद्दी गालियों के साथ तन मन पर कुप्रभाव डालने वाले जहरीले रासायनिक रंगों से होली खेलना शुरू कर दिया जिससे व्यथित होकर संत श्री आशारामजी बापू ने 25 वर्ष पूर्व से पलाश के फूलों के प्राकृतिक रंग से होली खेलने की शुरुआत कराई जिनके सानिध्य में विगत वर्षों में सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली सहित देश के कई क्षेत्रों में वैदिक होली के आयोजन होते रहे है किंतु सात्विकता व आध्यात्मिकता बढ़ाकर ऐसे पर्व की शुरुआत करने वाले निर्दोष हिन्दू संत श्री आशारामजी बापू को विगत 9 वर्षों से झूठे आरोप के तहत जोधपुर जेल में रखा हुआ है और एक दिन की भी जमानत नही दी गई जिससे देश विदेश के करोड़ों लोग उनके सत्संग व उनके सानिध्य में वैदिक होली मनाने से वंचित हो गए है। इसीलिए देशभर के साधकों ने न्याय पालिका व सरकार के प्रति रोष व्यक्त कर उनकी शीघ्र रिहाई की मांग की है। आयोजन में जिलाध्यक्ष राजेश मदान के साथ साधक सुरेंद्र कुंभारे, प्रवीण माने, अनूप मालवीय, प्रभाशंकर वर्मा, रवि आर्य, डॉक्टर राजकुमार मालवीय, सतीश पाल आदि साधकों ने पूज्य बापूजी की शीघ्र रिहाई की मांग की है।