सरस्वती नदी और भीम बेटका की खोज : पद्मश्री डाक्टर वाकणकर द्वारा ।
सारनी। विश्व में भारत का गौरव बढ़ाने वाले पद्मश्री डाँक्टर विष्णु श्रीधर् वाकणकर की 102 वी जयंती पर संस्कार भारती मध्य भारत प्रांत के सह महामंत्री मोतीलाल कुशवाह के निर्देशानुसार अपने अपने घर पर ही कार्यक्रम कर डाक्टर वाकणकर जी की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करना है । संस्कार भारती सारनी ईकाई के अध्यक्ष अंबादास ने बताया कि हमारे देश के गौरव पदम्श्री हरि भाऊ वाकणकर ऐतिहासिक और पुरातात्विक शोधकर्ता थे , उन्होंने अपने जीवन काल में देश विदेश में अनेक शोध कार्य किये हैं। उनके अनेक शिष्य कनाडा , अमेरिका , रशिया भी शोध कार्य कर रहे हैं। श्री वाकणकर जी को विदेशो में भी अनेक सम्मान प्राप्त हुए , उनकी खोजो को भारतीय अभिलेख नाम की पुस्तक में देखा जा सकता है। विदेशों में अनेक सम्मान मिलने के बाद भारत सरकार ने 1975 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित
किया । संस्कार भारती सारनी के अध्यक्ष ने बताया कि भोपाल – नागपुर राज मार्ग पर भोपाल से लगभग 46 कि मी दूर भीम बेटका की खोज डाक्टर वाकणकर ने सन् 1957-58 में की । महाभारत कालीन पुरानी गुफाएं ओर पांच हजार वर्षो से भी अधिक भित्ति चित्रो को खोजा , जो कि आज जिज्ञासा का केंद है। श्री वाकणकर ने भारत के लिए ही नहीं , पूरी दुनिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण विलुप्त सरस्वती नदी की खोज की जिसके तट पर वेदो की रचना हुई , जो कालान्तर में भू प्रकृति परिवर्तन के कारण विलुप्त हो गई थी। विदेशियो ने सरस्वती नदी के अस्तित्व को नकार दिया था। वाकणकर जी ने सरस्वती नदी के अस्तित्व को पुनः प्रमाणित करके दिखाया। मध्य भारत प्रांत के लिए यह गौरव की बात है कि श्री वाकणकर जी मध्यप्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन के रहने वाले थे। सारनी ईकाई के अध्यक्ष अंबादास सूने ने बताया कि संस्कार भारती की स्थापना सन् 1981 में गोरखपुर में डाक्टर वाकणकर ने की । संस्कार भारती विशेष रूप से नार्थ ईस्ट में भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए कार्य कर रही है। 3 अप्रेल 1988 को सिंगापुर की अंतिम यात्रा में श्री वाकणकर जी का निधन हुआ । संस्कार भारती सारनी ईकाई की सदस्य कल्पना सोनी ने रंगोली के माध्यम से डाक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर का छाया चित्र के साथ भीम बेटका के शैल चित्र बनाने का प्रयास किया है।