संस्कार भारती की ऑनलाइन संगोष्ठी के 8 वां पुष्प ।
रचनाकारों को समाज के हित लिखना चाहिए
सारनी। लोक-मंगल की कामना से सृजित साहित्य ही समाज में अपनी सुगंध बिखेरता है। अच्छे लेखन और वक्तृत्व कौशल के विकास के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि हम श्रेष्ठ साहित्यकारों की कृतियों को पढ़ें व अच्छे वक्ताओं को सुनें।अपनी वाणी में विनम्रता लायें तथा सदा अहंकार रहित होकर आचरण करें।समाज में जागरण का शंखनाद करना रचनाकार का धर्म है।निरंतर अभ्यास से लेखन और वक्तृत्व कला में निखार आता है।साधना से सिद्धि प्राप्त होती है इसलिए कवि, लेखक या कलाकार को साधक होना चाहिए।उक्त विचार प्रख्यात साहित्यकार , पत्रकार एवं “लोकमंगल” पत्रिका के संपादक भगवान स्वरूप चैतन्य ने संस्कार भारती मध्य भारत प्रांत की भोपाल महानगर इकाई द्वारा ऑनलाइन आयोजित साहित्य संगोष्ठी के आठवें भाग में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। श्री चैतन्य ने अपने उद्बोधन में लेखन और वक्तृत्व कला से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए गोस्वामी तुलसीदास तथा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की पंक्तियों को उद्धृत किया। संगोष्ठी का शुभारंभ आत्म ज्योति विद्यालय,ग्वालियर की छात्राओं द्वारा डॉ.रूपाली गोखले के मार्गदर्शन में प्रस्तुत संस्कार भारती के ध्येय गीत के साथ हुआ ।तत्पश्चात् संगोष्ठी की संयोजिका कुमकुम गुप्ता ने संगोष्ठी के आयोजन की योजना और क्रियान्वयन के उद्देश्य पर अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में पुस्तक परिचय के क्रम में सबसे पहले डॉ.विनीता राहुरिकर ने मानवीय संवेदनाओं और संबंधों की भावभूमि पर आधारित अपने कहानी संग्रह का परिचय देते हुए ” पोपली अम्मा”कहानी की सुंदर प्रस्तुति दी। वरिष्ठ लेखिका शैफालिका श्रीवास्तव ने काव्य संग्रह “इन्द्रधनुष” का परिचय कराते हुए संग्रह की कुछ कविताओं पर अपने विचार रखे।
संगोष्ठी का कुशल संचालन दुर्गा मिश्रा भोपाल ने तथा युवा कवि राजेन्द्र राज हरदा ने आभार प्रकट किया। इस अवसर पर अनीता करकरे गवालियर, मोतीलाल कुशवाह बैतूल, अरूणा शर्मा, सुनीता यादव,मनोरमा मिश्रा, सारनी से अंबादास सूने, पी एन बारंगे, कल्पना सोनी, मुकेश सोनी, नसरीन सिददकी, डबरा से राजवीर खुराना, डाली पंथी, मध्यभारत प्रांत की विभिन्न इकाइयों से बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने ऑनलाइन सहभागिता की।