श्रद्धा – आस्था और विश्वास का त्रिवेणी संगम बैतूल जिले का प्राचिन गांव रोंढ़ा

RAKESH SONI

श्रद्धा – आस्था और विश्वास का त्रिवेणी संगम बैतूल जिले का प्राचिन गांव रोंढ़ा।

 

बैतूल। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष भर में दो बार नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। चैत्र मास की नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि और शरद ऋतु में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। मध्यप्रदेश – महाराष्ट्र की सीमा पर बसे आदिवासी बाहुल्य बेतूल जिले के एक प्राचिन गांव में प्रतिवर्ष दो बार श्रद्धा – आस्था और विश्वास का त्रिवेणी संगम देखने को मिलता है। अब गांव की अधिकांश गलिया कांंक्रिट की सड़को में बदल जाने के बाद भी गांव की बहू – बेटियां घर के करीब से गुजरने वाली गलियों की सड़को पर घर आंगन की तरह रंग – बिरंगी रंगोली डाल कर पूरे गांव को सजाने का कार्य करती चली आ रही है। बेमिसाल बेतूल जिले के इस प्राचिन गांव में यूं तो दोनों ही नवरात्रि में दुर्गा के नौ स्वरूपों की स्थापना एवं पूजन का सामुहिक कार्यक्रम किया जाता है लेकिन गांव में विराजमान भवानी माय और माता माय के पास सुबह – शाम दोनो समय कुंवारी कन्या से लेकर पौढ़ महिलाए तक जल अर्पण तथा आस्था का दीप जलाने चली आती है।
जिस पेड़ के नीचे से हाथी

 

जहाँ एक ओर लोग सड़को और मकानो तथा दुकानो के लिए हरे भरे पेड़ो को बेरहमी से काटते चले आ रहे है वहीं पर बैतूल जिला मुख्यालय से महज़ मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम रोंढ़ा में एक चम्पा का पेड लोगो की आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। ग्राम पंचायत रोंढा में सेवानिवृत वनपाल स्वर्गीय श्री दयराम पंवार के पैतृक मकान से लगे इस पेड की छांव के नीचे विराजमान गांव की चमत्कारी खेड़ापति माता मैया के चबतुरे पर लगे इस पेड की उम्र लगभग तीन सौ साल से ऊपर बताई जाती है। ग्राम रोंढा की 79 वर्षिय श्रीमति गंगा बाई देवासे के अनुसार उसके जन्म के पहले से इस स्थान पर उक्त चम्पा का पेड है। श्रीमति देवासे के अनुसार गांव के इस मोहल्ले की उस गली के मोड पर स्थित चम्पा के पेड के नीचे से कभी हाथी आया – जाया करता था , लेकिन चम्पा के पेड़ की एक डाली इस तरह झुक गई कि आदमी अगर उस पेड़ के नीचे से निकलते समय झुक कर ना चले तो उसका सिर टकरा जाता है। बैतूल जिले के छोटे से सर्वोदयी गांव रहे रोंढा में संत टुकडो जी महराज एवं भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के कभी पांव पडे थे। बैतूल जिले के इस ग्राम पंचायत रोंढा के उस तीन सौ साल से अधिक उम्र के चम्पा के पेड़ को देखने के लिए लोग दूर – दूर से आते रहते है।
चम्पा के फूल
जब – जब चमेली के फूलो की बाते चलेगी तो चम्पा के फूलो का जिक्र होना स्वभाविक है क्योकि चम्पा के फूल के तीन गुण विशेष है पहला रंग – दुसरा रूप – तीसरा यह कि इस फूल की सुगंध नहीं आती है। इस फूल पर कभी भवंरा नही मडराता। गांव के लोगो के अनुसार गांव में चम्पा का एक मात्र पेड़ है जो कि अपनी उम्र के तीन सौ साल पूरे कर चुका है। आज भी चम्पा का पेड़श्रद्धा – आस्था और विश्वास का त्रिवेणी संगम खेड़ापति बीजासन माता मैया पर अपने फूलो की वर्षा करता रहता है।
नीम की आगोश में चम्पा
नीम का स्वाद कड़वा होता है पर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक युवा नीम के पेड़ ने तीन सौ साल पुराने चम्पा के पेड़ को अपने आगोश में ले रखा है। नीम के पेड़ ने जिस तरह से चम्पा के पेड़ को अपनी बाहों में जकड़ रखा है उसे देख कर हर कोई हैरान है। जानकार बताते है कि कुंवारी कन्याओं से लेकर नवविवाहिता की जब नीम उतारी जाती है तब उसे नीम की पत्तियों से ढांक कर लाया जाता है। ऐसे मौसम में जब नीम के पेड़ में निम्बोली आती है तब नीम की पत्तियों को जल के साथ खेड़ापति माता मैया पर चढ़ाते समय एक निम्बोली ने चम्पा के पेड़ के नीचे ही अकुंर होकर वह आज पेड़ का रूप ले गई।

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