वीरांगना रानी दुर्गावती का साम्राज्य रहा गोंडवाना का स्वर्ण युग-लक्ष्मीनारायण बामने l

चोपना। स्वतंत्रता संग्राम में अपनी आहुति देने वाले अनेको महान आत्माओं के ग्राम सतलदेही में वनवासी कल्याण परिषद के तत्वधान में रानी दुर्गावती की जन्म दिवस उत्सव के रूप में मनाया,करीब आधा सैकड़ा से अधिक ग्रामवासियों ने एकत्रित होकर गोंड साम्राज्य की रानी दुर्गावती की जन्म दिवस मनाया है। वनवासी कल्याण परिषद के जिला अध्यक्ष भूरेलाल चौहान ने रानी दुर्गावती की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत की एक प्रसिद्ध वीरांगना जिसने मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में शासन किया।उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर के राजा पृथ्वी सिंह चंदेल के यहाँ हुआ उनका राज्य गढ़मंडला था,जिसका केंद्र जबलपुर था। उन्होने अपने विवाह के चार वर्ष बाद अपने पति गौड़ राजा दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया। इनके शासन में राज्य की बहुत उन्नति हुई। दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ्यास था। उनके राज्य का नाम [[गोंडवाना]] था जिसका केन्द्र जबलपुर था। उनके साम्राज्य में लड़कियों को युद्ध कौशल सिखाकर पूरी तरह तैयार करके शामिल किया गया था। रानी के साथ इसी महिला दस्ते की वीरांगनाएं रहा करती थीं। उनका मानना था कि यदि महिला सशक्त होगी तो पूरा परिवार व समाज सशक्त होगा।आज की महिलाओं के उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वनवासी कल्याण परिषद के मध्यभारत प्रान्त संगठन मंत्री लक्षिणारायन बामने ने अपने उद्बोधन में बताया कि वीरांगना की योजनाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस काल में थीं। गोंडवाना साम्राज्य तत्कालीन प्रथम साम्राज्य था जहां महिला सेना भी थी। रानी की बहन कमलावती व पुरागढ़ की राजकुमारी इस दस्ते की कमान संभालती थीं। वीरांगना ने अपने जीवनकाल में सोहल युद्ध लड़े। अस्सी हजार गांवों, 57 परगनों से युक्त राज्य को संभालने का प्रबंधन, राजनीति, कूटनीति, सहृदयता, प्रजा का हित सोचने वाली, वीरता जैसे गुणों के कारण ही रानी का साम्राज्य गोंडवाना का स्वर्ण युग माना जाता है।राजकुमारी दुर्गावती की वीरता, रूप और बुद्धि कौशल से प्रभावित गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्रामशाह और उनके पुत्र दलपति शाह ने कीरत सिंह से उनकी पुत्री का अपने पुत्र के साथ विवाह प्रस्ताव रखा। यह विवाह उस समय सामाजिक समरसता का उदाहरण है। जो यह भी बताता है कि हमारे देश की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है सामाजिक समरसता। 1541 में राजा संग्रामशाह का निधन होने के बाद भी 1542 में दुर्गावती व दलपतिशाह का विवाह हुआ। 1545 में शेरशाह के कलिंजर पर आक्रमण से राजा कीरतसिंह शहीद हो गए। 1548 में दलपति शाह की मृत्यु भी हो गई। इसके बाद रानी ने पांच वर्षीय पुत्र वीर नारायण की ओर से गोंडवाना साम्राज्य की सत्ता संभाली और मरते दम तक उसकी रक्षा की। रानी के शासनकाल में गोंडवाना साम्राज्य राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व साहित्य के क्षेत्र में पल्लवित होकर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा।रानी दुर्गावती के शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और उनका राज्य भी लगातार प्रगति कर रहा था | रानी दुर्गावती के शासन काल में उनके राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गई | रानी दुर्गावंती ने अपने शासन काल में कई मंदिर, इमारते और तालाब बनवाये | इनमें सबसे प्रमुख हैं जबलपुर का रानी ताल जो रानी दुर्गावती ने अपने नाम पर बनवाया , उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरिताल और दीवान आधार सिंह के नाम पर आधार ताल बनवाया | मुगल सेना रानी से कई बार अपनी हार से तिलमिलाई मुग़ल सेना के सेनापति आसफ खान ने विशाल सेना एकत्र की और बड़ी-बड़ी तोपों के सांथ दुबारा रानी पर हमला बोल दिया |रानी दुर्गावती भी अपने प्रिय सफ़ेद हांथी सरमन पर सवार होकर युद्ध मैदान में उतरीं | रानी के सांथ राजकुमार वीरनारायण भी थे रानी की सेना ने कई बार मुग़ल सेना को पीछे धकेला | कुंवर वीरनारायण के घायल हो जाने से रानी ने उन्हें युद्ध से बाहरसुरक्षित जगह भिजवा दिया | युद्ध के दौरान एक तीर रानी दुर्गावती के कान के पास लगा और दूसरा तीर उनकी गर्दन में लगा | तीर लगने से रानी कुछ समय के लिये अचेत हो गई| जब पुनः रानी को होश आया तब तक मुग़ल सेना हावी हो चुकी थी | रानी के सेनापतियों ने उन्हें युद्ध का मैदान छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह दी परन्तु रानी ने इस सलाह को दरकिनार कर दिया | अपने आप को चारो तरफ से घिरता देख रानी ने अपने शरीर को शत्रू के हाँथ ना लगने देने की सौगंध खाते हुए अपने मान-सम्मान की रक्षा हेतु अपनी तलवार निकाली और स्वयं तलवार घोपकर अपना बलिदान दे दिया और इसतिहास में वीरंगना रानी सदा – सदा के लिये अमर हो गई |जिस दिन रानी ने अपना बलिदान दिया था वह दिन 24 जून 1564 ईसवी था | अब प्रतिवर्ष 24 जून को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है और रानी दुर्गावती को याद किया जाता है | आज ऐसी वीरांगना से वनवासी समाज को अपने बच्चो को आने वाले पीढ़ी को उनकी शौर्य गाथा सुनानी चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी विनवासी समाज की गौरव को समझ सके। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से मुख्य वक्ता वनवासी कल्याण परिषद मध्य भारत प्रान्त संगठन मंत्री लक्ष्मीनारायण बामने,जिला संगठन मंत्री श्याम ठाकरे,प्रान्त स्वस्थ प्रमुख विनोद कटरे, नर्मदापुर संगठन मंत्री राजेश बेलवंशी,प्रान्त हित रक्षा आयाम के सदस्य संजीव रॉय,जिला अध्यक्ष भूरेलाल चौहान,सतलदेही सरपंच अरविंद धुर्वे,उपसरपंच नारायण यादव,बंजारी ढाल सरपंच महेश कासदे,धपडा के सरपंच सुमरलाल भलावी,दिनेश भजरवाल, मातृ शक्ति बेबी उइके, जाया धुर्वे,ज्योति उइके एवं एक दर्जन से अधिक महिलाए एवं पुरुष उपस्थित थे।