यूथ का आज, कल दोनों खराब
सारणी:-भारत दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। सबसे बड़ी आबादी वाले देश चीन में युवाओं की बड़ी कमी हो गई है और इसलिए चीन ने कानून बदल कर लोगों को तीन बच्चे पैदा करने की छूट दी है। इसके उलट भारत में 18 से 44 साल की उम्र के लोगों की संख्या 60 करोड़ है। यानी भारत की पूरी आबादी में 40 फीसदी से ज्यादा लोग 18 से 44 साल की उम्र वाले हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण और उसको संभालने में भारत की विफलता ने सबसे ज्यादा इसी समूह के लोगों को प्रभावित किया है। भारत में 18 साल से कम उम्र की आबादी भी 25 फीसदी से ज्यादा है। इन बच्चों को भारत का भविष्य कहा जाता है। इन्हीं के बारे में नरेंद्र मोदी सरकार ने नारा दिया था- पढ़ेगा इंडिया, तभी तो बढ़ेगा इंडिया। एक नारा- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का भी दिया गया था। लेकिन कोरोना संक्रमण के बीच पढ़ाई सरकार की प्राथमिकता में रहा ही नहीं इसलिए भविष्य तो अंधकारमय हो गया है। युवाओं का वर्तमान भी पूरी तरह से चौपट हो गया है।
एक-एक करके उनके लिए सारे रास्ते बंद होते जा रहे हैं। मोदी सरकार ने स्टार्टअप इंडिया अभियान की शुरुआत की थी लेकिन अब स्टार्टअप की उलटी गिनती शुरू हो गई है। जनवरी में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले 12 महीने में देश के 75 फीसदी स्टार्टअप्स बंद हो जाएंगे। वैसे इनके बंद होने की शुरुआत नोटबंदी और जीएसटी के साथ ही हो गई थी। नोटबंदी और जीएसटी की वजह से कंपनियों और स्टार्टअप्स दोनों का बंद होना शुरू हो गया था। जुलाई 2019 में ही भारत सरकार ने संसद में बताया था कि देश की 37 फीसदी कंपनियां बंद हो गई हैं। देश में कुल रजिस्टर्ड 18 लाख से कुछ ज्यादा कंपनियों में से छह लाख से ज्यादा कंपनियां बंद हो गई थीं। इसके बावजूद जो कंपनियां बची हुई थीं उन्हें कोरोना वायरस की दो लहर के दौरान किए गए लॉकडाउन ने मार दिया।
कोरोना की दूसरी लहर के बाद पूरे देश में अनाथ हुए बच्चों की तलाश चल रही है और उनके भविष्य की चिंता में कई तरह की घोषणाएं की जा रही हैं। लेकिन कोरोना की दो लहरों के दौरान युवाओं पर हुए असर का आकलन नहीं किया गया। स्कूल-कॉलेज लगातार बंद रहने से उनकी पढ़ाई ठप्प हो गई। परीक्षाएं स्थगित हो गईं, जिनसे आगे के रास्ते भी बंद हुए। लाखों घरों में कमाने वाले सदस्य की या तो नौकरी चली गई या आमदनी कम हो गई। सीएमआईई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 97 फीसदी परिवारों की कमाई घटी है। नौकरी जाने या कमाई घटने की मजबूर में बड़ी संख्या में युवाओं को पढ़ाई छोड़ कर छोटे-मोटे काम धंधों में लगना पड़ा। हालांकि उससे भी कमाई कितनी बड़ी यह शोध का विषय है पर यह तय है कि उनका भविष्य खराब हो गया। भारत सरकार या राज्यों की सरकारों ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों या स्वरोजगार करने वालों के लिए किसी तरह की राहत नही दी। अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन, जापान आदि देशों ने लोगों के हाथ में नकद पैसे पहुंचाए ताकि उनके परिवार का भरण-पोषण हो। भारत में ऐसा कुछ नहीं किया गया।