पंडित कमल किशोर जी नागर एक ऐसा संत जो 7 दिन भागवत करने के बाद दक्षिणा में लेता है केवल तुलसी पत्र
जीवन में हाय- हाय कर रहे हो हरि- हरि करोगे तो जीवन सुधरेगा । 2 दिन माला फेरी ,2 दिन आरती करी, फिर बंद कर दी ।ऐसा मत करो नौकरी पक्की करो ।यहां नौकरी लगेगी तो कभी रिटायर नहीं होगे। अच्छे संस्कार, अच्छी शिक्षा जीवन भर काम आती है।- पंडित कमल किशोर जी नागर
घोड़ाडोंगरी। सतपुड़ा अंचल क्षेत्र के घोड़ाडोंगरी नगर में हो रही श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा कथा में मालवा के संत ,गो सेवक, प्रख्यात कथावाचक पंडित कमल किशोर जी नागर के सुमधुर वचनों से श्रोताओं को श्रीमद् भागवत कथा का आनंद मिल रहा है ।आज कथा में नागर जी ने व्रत, त्यौहार, पूजन ,कर्मकांड का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि 100 ब्राह्मण के बराबर एक भांजा होता है। आप प्राइवेट बस में बैठे हैं जगह नहीं है फिर भी लटक रहे हैं ।कंडक्टर कहता है आगे बढ़ो जगह है ही नहीं। नई सवारी को भी भर रहा है। यही जिंदगी है। मां घर छोड़, बच्चा छोड़ नहीं जा सकती, पिता जा सकता है। मां की गोदी में बच्चा शांत रहता है। क्योंकि मां की गोदी में जो बात है वह कहीं नहीं है ।अपने यहां धर्म की कितनी बड़ी व्याख्या है। धर्मपत्नी, धर्मपुत्र इत्यादि। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को अपने धर्म का ज्ञान होना चाहिए ।उसे पता होना चाहिए कि उसका अपने माता पिता, पत्नी, पुत्र, पड़ोसी, दुखी के साथ क्या धर्म है ।अपने धर्म को लोग नहीं समझते कि मेरा धर्म क्या है। रास्ते में कोई परेशान मिले, गाड़ी खराब हो गई है तो अपना धर्म क्या है। धर्म का ज्ञान होगा तो पाप नहीं होगा। संगठित रहना चाहिए। अनुभव ऐसी चीज है जो बचपन में मिल जाता है ।बचपन में जब चक्की पर गेहूं पिसाने जाते है तो वापसी में आटा गर्म रहता है ।कभी सिर पर रखते हैं कभी कांधे पर रखते हैं ,यही जिंदगी भर चलता है। अपने अतीत में जाओ, अपने अंदर जाओ ,जो बीत गया उसे पुनः याद करो। घर कैसे चलाते हो ,बच्चे की शादी कैसे करी तो कांधे और सिर याद आते हैं। जीवन की जिम्मेदारी जीवन पर्यंत निभाना है। जिंदगी कांधे माथे ही निकालना पड़ता है ।यह बातें बच्चों को सिखाओ ।आज संपन्न लोग ज्यादा दुखी हैं। बच्चे माथे चढ़ गए हैं । बुजुर्गों से कहा कि बच्चों की बुराई मत करो। बहू की बुराई मत करो। यह जमाना अब डाटने का नहीं रहा। 50 साल पहले मास्टर चमड़ी उधेड़ देता था और घर पर बताओ तो घर पर भी पिटाई लगती थी। पहले डांटने पर लोग साधु बन जाते थे। अब लटक जाते हैं ।बच्चों को धर्म सिखाओ ,सहना सिखाओ ।बच्चों में संस्कार बचपन से ही डालना पड़ता है। बाद में सुधारने का प्रयास विफल है। रोटी बनाने के पहले ही आटे में नमक मिलाना पड़ता है। बाद में नहीं मिलता। सांप को दूध पिलाया पर जहर ही बना रहा ।सांप काचली छोड़ देगा पर काटने की आदत नहीं छोड़ेगा। कभी भी गलत सोहबत नहीं करना चाहिए ।दर्शन वचन और धर्म की बातें यह सब कहीं पड़ी रहती हैं ।समय आने पर काम करती हैं ।राम जन्म पर दिन बड़ा ,कृष्ण जन्म पर रात । जीवन में अच्छा ना कर सको तो कोई बात नहीं पर जो अच्छा करते हैं उनके साथ रहो। खेत में गेहूं की फसल में पानी छोड़ते हैं तो आखिरी तक पहुंचाना पानी देने वाले की जिम्मेदारी है ।साधु को ऐसी बात करना चाहिए जो बात सब तक पहुंचे ।कथा सुनोगे तो पुण्य लगेगा ।यहां भी रहेगा साथ में भी जाएगा। आज लोग प्रश्न करते हैं कि क्या भगवान है ।क्या आज भी मंदिर में बैठे हैं ,तो जवाब देना सीखो कि अगर बेटा हजार कोस दूर काम करने गया और पिताजी खत्म हो गए तो वहां सूतक लगेगा ।तो जहां रहोगे वहां पुण्य भी लगेगा। सबको भरोसा होना चाहिए कि मैं जहां भी रहूंगा जो बोया है वह तो काट लूंगा ही। जहां फसल अच्छी होती है वहां पक्षी भी जाएंगे, चोर भी जाएंगे और ढोर भी जाएंगे ।गलत बोलने से महाभारत जैसा विश्व युद्ध हो गया ।अगर द्रोपती नहीं कहती अंधे की औलाद अंधी होती है तो यह विश्व युद्ध नहीं होता ।कोई बात समय-समय पर होती है एक बात से किसी की नाव किनारे लग जाती है । चींटी की बॉबी मैं जिस तरह साप बैठा रहता है वैसी ही स्थिति मनुष्य की है ।बॉबी मैं भी जगह-जगह छेद रहते हैं इसमें भराया साप अपना क्रोध है। सांप डस्ता है तो एक ही मरता है ।यह कहता है तो पूरा परिवार झेलता है। जहर खाने वाले मुंह से खाते हैं खुद मरते हैं। लेकिन कोई कान से जहर पिलाते हैं। कान भरते हैं। जिसके घर में जहर डाला उससे पूरा परिवार बर्बाद हो गया। तमाचा पड़ता है तो मन की दिशा बदल जाती है। टीवी, मोबाइल देख कर आज की औलाद बिगड़ गई ।मां-बाप के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करोगे तो उन्हें देखकर बच्चे भी सीखेंगे ।जीवन में हाय हाय कर रहे हो हरि हरि करोगे तो जीवन सुधरेगा ।2 दिन माला फेरी ,2 दिन आरती करी फिर बंद कर दी ।ऐसा मत करो नौकरी पक्की करो ।यहां नौकरी लगेगी तो कभी रिटायर नहीं होगे। अच्छे संस्कार, अच्छी शिक्षा जीवन भर काम आती है। उन्होंने बताया कि कई लोगों के मन में प्रश्न होता है की कथा में कितना खर्चा आता है तो हम दक्षिणा में केवल तुलसी पत्र ही लेते हैं जो भी खर्चा आता है वह व्यवस्था बनाने में आता है। कथा में कोई खर्चा नहीं आता ।सिर्फ व्यवस्थाओं में ही पैसा खर्च होता है ।साक्षात से साक्षात्कार बड़ा होता है कथा साक्षात्कार कराती है ।सद्गुरु क्या करता है अंखियों का पर्दा दूर करता है ।दुनिया में आकर माया का पर्दा आंखों पर पड़ गया है। व्यक्ति को अपनी ताकत दिखाना है तो धन दौलत की ताकत दिखाने के बदले भक्ति की ताकत दिखाना चाहिए।