तम्बू में भी कर लेते है मासिक धर्म के सख्त नियमों का पालन
बंजारा जीवन जीने वाली महिलाओं से उन दिनों पर सशक्त टीम ने की चर्चा
बैतूल। 8 बाई 6 के तम्बू में रहकर महीनों तक गुजर बसर करने वाले परिवार की महिलाओं के लिए मासिक धर्म के दिन कठिनाई भरे होते है। महिलाओं की कठिनाईयों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक छोटे से तम्बू में पांच से छह सदस्यों के बीच भी वे सख्ती से मासिक धर्म के नियमों का पालन करती है। कपड़े से बने तम्बू में बिना किसी चीज को छुएं रातें बिताना और यदि बच्चे छोटे है तो उन्हें भी अपने ही साथ सुलाना कितना कठिन हो सकता है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मासिक धर्म की रुढ़ियों के प्रति जागरुक करने बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति द्वारा संचालित सशक्त सुरक्षा बैंक प्रकल्प की टीम तम्बू लगाकर रह रहे लोहपीट समुदाय की महिलाओं से मिली।
मूलत: चित्तौड़गढ़ का रहने वाला है समुदाय
राजस्थान का चित्तौड़गढ़ रानी पदमावती के जौहर एवं वीरांगना महिलाओं के शौर्य के लिए प्रसिद्ध है। बैतूल में वर्तमान में निवासरत लोहपीट समुदाय भी मूलत: चित्तौड़गढ़ से ही है। सशक्त सुरक्षा बैंक की संस्थापक गौरी पदम, संयोजक नीलम वागद्रे एवं सदस्य शिवानी मालवीय जब राजस्थानी डेरे पर पहुंची और महिलाओं से मासिक धर्म को लेकर बात की तो वे पहले संकोच करने लगी। कुछ तो बात करने ही तैयार नहीं थी फिर उन्हें विश्वास में लेकर बात करना शुरु किया तो समुदाय की महिलाएं शैतान बाई और लक्ष्मी बाई ने बताया कि वर्षों पहले उनके परिवार बाड़ी बरेली आ गए थे। अब वहीं स्थायी मकान बनाकर उनके परिवार रहते है। परिवार की गुजर बसर परम्परागत व्यवसाय से ही होती है। लोहपीट समुदाय की इन महिलाओं से जब मासिक धर्म की समस्याओं पर बात की तो वे बोल पड़ी आम तोर पर किसी को मरने के बाद जलाया जाता है, लेकिन हम तो रोज ही आग में जलते है। लोहे के बर्तन, औजार बनाना और बेचकर उससे होने वाली आय से ही परिवार का भरण पोषण संभव होता है। बाजार की तलाश में यह समुदाय बंजारों सा जीवन जीने विवश है। इन महिलाओं ने बताया कि जहां रोज आग में तपना होता है वहां मासिक धर्म की तकलीफें याद भी नहीं रहती। ये महिलाएं मासिक धर्म के दिनों में परम्परागत साधनों का ही उपयोग करती है। सशक्त टीम ने महिलाओं को सेनेटरी पेड उपयोग करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें कुछ पेड वितरित भी किए।
छोटे से तंबू में होता है नियमों का पालन
शैतान बाई ने बताया कि मासिक धर्म आने पर वह तंबू में एक साईड ही रहती है। रसोई नहीं बनाती और परिवार के उपयोग का पानी छूना वर्जित होता है। मासिक धर्म के दिनों में पास की तम्बू में रहने वाली महिलाएं सहयोग करती है और उनकी बारी आने पर वह मदद करती है। राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश हो या मध्यप्रदेश मासिक धर्म को लेकर कुछ रुढ़ियां महिलाओं की तकलीफों का कारण वर्षों से है। तकलीफ भरे दिनों में अव्यवस्थित और असहज जीवन जीने वह मजबूर है लेकिन फिर भी कुछ नहीं कह पाती।